सागर की लहरों में डूबता संभलता ,
मैं सोचता था की कब आएगा किनारा
जब शांत किनारे पर बैठा तो लगा,
पीछे छोड़ आया मैं जीवन सारा
यूँ किनारे पर बैठना सपना नहीं था तेरा
लहरों की उछल कूद में , और तूफ़ान के साए में,
सचमुच ही बस्ता था तेरा बसेरा,
हूँ मैं एक मुसाफिर, जिसको बस चलते जाना है..
एक समुन्दर की लहर को छोड़ कर दूसरी में मिल जाना है......
ये कहानी है मेरी ज़िन्दगी की, जो अब जीने का बहाना है
रेतपर पड़े निशानों को पीछे छोड़ कर बस,
आगे ही आगे बढ़ते जाना है...
1 comment:
kaafi deep kavita hai baba!!
very well said waise! Acca laga padke!
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